वो बारिश ही क्या, जो भिगोये ना,
वो धूप ही क्या, जो झुलसाए ना ।
वो रास्ता ही क्या, जो भटकाए ना,
वो मंज़िल ही क्या, बेसब्र जो बनाये ना।
वो सागर ही क्या, गोते जो खाये ना,
वो कश्ती ही क्या, जो डगमगाए ना ।
वो दिल ही क्या, जो बहकाये ना,
वो दिमाग ही क्या, जो भरमाये ना ।
तो पथिक, चलता जा...,
वो ज़िन्दगी ही क्या, जो थकाये ना ?
- भुवनेश अग्रवाल
(20140613, 10:43 AM)
वो धूप ही क्या, जो झुलसाए ना ।
वो रास्ता ही क्या, जो भटकाए ना,
वो मंज़िल ही क्या, बेसब्र जो बनाये ना।
वो सागर ही क्या, गोते जो खाये ना,
वो कश्ती ही क्या, जो डगमगाए ना ।
वो दिल ही क्या, जो बहकाये ना,
वो दिमाग ही क्या, जो भरमाये ना ।
तो पथिक, चलता जा...,
वो ज़िन्दगी ही क्या, जो थकाये ना ?
- भुवनेश अग्रवाल
(20140613, 10:43 AM)
Fantastic poetry... :)
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